लो अब महंगी ज़िन्दगी और मौत सस्ती हो चली ।
शहर को रवाना हुए लोग, कि खाली बस्ती हो चली ॥
मुफ़लिसी ने इन होठों की मुस्कुराहट छीन ली , लेकिन,
मेरे अश्को का कोई दावेदार नहीं, दिल को ये तसल्ली हो चली ॥
यारो ने यारी निभाई कुछ इस तरह , ऐ मेरे रकीब ,
कि इस ज़हां मे, अब हमारी, दुश्मनो से दोस्ती हो चली ॥
हर शख्स है अपने ही बनाये हुए, ख्वाबो-खयालो मे रहता हुआ ।
हर किसी के लिये, ये दुनिया देखो, छोटी हो चली ॥
जिस आँगन मे गूंजा करती थी कभी सदा, किलकारियों की ,
देखो वो घर भी,उन यादों के साथ, आज निलाम हो चली ॥
चन्द साँसों को समेटकर रखा था,इस दिल मे, बड़े ऐख्तियार से,
लो वो भी आज, तुमहारे बिछरते ही, बेवफ़ा हो चली ॥
Bhut Umda...badhai!!
ReplyDeleteजिस आँगन मे गूंजा करती थी कभी सदा, किलकारियों की ,
ReplyDeleteदेखो वो घर भी,उन यादों के साथ, आज निलाम हो चली ॥
एक से एक उम्दा शेर!
behad khubsurat rachna hai ...
ReplyDeletebahut badhai aapko ...
यारो ने यारी निभाई कुछ इस तरह , ऐ मेरे रकीब ,
ReplyDeleteकि इस ज़हां मे, अब हमारी, दुश्मनो से दोस्ती हो चली ...
सच है .... दुश्मनों से तो फिर भी सावधान रहते हैं लोग ...... अपने ही दुश्मन बन जाएँ तो क्या होगा ..........
लो अब महंगी ज़िन्दगी और मौत सस्ती हो चली ।
ReplyDeleteशहर को रवाना हुए लोग, कि खाली बस्ती हो चली ॥
bahut khoob!
यारो ने यारी निभाई कुछ इस तरह , ऐ मेरे रकीब ,
ReplyDeleteकि इस ज़हां मे, अब हमारी, दुश्मनो से दोस्ती हो चली ॥
हर शख्स है अपने ही बनाये हुए, ख्वाबो-खयालो मे रहता हुआ ।
हर किसी के लिये, ये दुनिया देखो, छोटी हो चली ॥
lajawab...........
बहुत खूब, लाजबाब !
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