हकीक़त में मिले उनसे, ऐसी हमारी क़िस्मत कहाँ । मुलाकात भी की हमने, तो ख्वाबो़ में की ॥ टूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से , गुफ़्तगू भी की हमने , तो निगाहों से की ॥
हकीक़त में मिले उनसे, ऐसी हमारी क़िस्मत कहाँ । मुलाकात भी की हमने, तो ख्वाबो़ में की ॥ टूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से , गुफ़्तगू भी की हमने , तो निगाहों से की ॥
bahut khub kaha.
ReplyDeleteumda kaam.
ReplyDeletebahut khub nigaho ne kahi
lab chup rahe aawaz nahi hone di
khwab me mulaqat badi kismat ki hay baat
hakikat ki dunia khwab se kubsurat to nahi.
badhai aur shubhkaamnayen.
my blog- www.zoomcomputers.blogspot.com
ाह बहुत खूब शुभकामनायें
ReplyDeleteगुफ़्तगू भी की हमने , तो निगाहों से की ॥
ReplyDeleteबहुत खूब.
हकीक़त में मिले उनसे, ऐसी हमारी क़िस्मत कहाँ ।
ReplyDeleteमुलाकात भी की हमने, तो ख्वाबो़ में की ॥
टूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से ,
गुफ़्तगू भी की हमने , तो निगाहों से की ॥
bahut khoob.....!!
बहुत उम्दा...वाह!
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत कविता
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
वाह !
ReplyDeleteआपको मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत खूब!
bahut khoob... too good
ReplyDeleteटूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से ,
ReplyDeleteवाह ..वाह... वाह....
बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं ।
ReplyDeleteजो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ॥
isee apane sher ko aapne vazan de diya .......
टूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से ,
गुफ़्तगू भी की हमने , तो निगाहों से की ॥
Bahut badiya........
टूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से ,
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