Wednesday, December 8, 2010

हादसे - ज़िन्दगी के

हालात मेरी ज़िन्दगी के क्या खराब हुए,
लोगो ने मुझसे ना मिलने का दस्तूर बना डाला ।
अब क्या करे गिला खुदा से, जो मेरा घर जल गया,
बिजली ने अपनी मर्ज़ी से अपना रास्ता बदल डाला ॥

हम तो दिये की बाती की तरह जलते रहते उम्र भर,
बेवक्त की आँधी ने मगर मेरा लौ बुझा डाला ।
ज़माने के लिये हम गुनहगार ठहरे, कैसे उन्हे समझाये,
मासूम बच्चो की भूख़ ने हमे मुज़रिम बना डाला ॥

राह पर निकले थे, तो साथ अपने कारवाँ था,
वक्त के साथ मेरे साये ने भी मुझसे नाता तोड़ डाला ।
मुशकिलों से लड़ने की आदत सी मुझको हो गई थी,
मिटा सके ना जब हौसला मेरा, तो मुझे मिटा डाला ॥