देखिये ना इन मदभरी निगाहों से हमें,
ना जाने क्या खता हो जाए ।
हम दिवाने होकर भटकते फिरे ,
और आप किसी ग़ैर की हो जाए ॥
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देखा है हमने भी ज़न्नत को ख्वा़बो मे अकसर ।
फिर भी हमें उनका मुस्कुराना बेहतर लगा ।।
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बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं ।
जो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ॥
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बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं ।
ReplyDeleteजो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ॥
बहुत सुन्दर !
बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं
ReplyDeleteजो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ....
लाजवाब शेर है ....... सच में निगाहों में बात हो तो फिर क्या बात है .......
बहुत ही सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना लिखा है आपने!
बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं
ReplyDeleteजो निगाहों से ना हो, वो गुफ्तगू क्या है ....
बहुत खूब
बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं ।
ReplyDeleteजो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ॥
ati sunder.......
बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं
ReplyDeleteजो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ....
लाजवाब शेर है ....... सच में निगाहों में बात हो तो फिर क्या बात है .......