Tuesday, July 27, 2010

ख्वाईश

आज मुद्दतो बाद, तेरे शहर में आया हूँ,
सोचा, तुझे ऐ ज़िन्दगी, सलाम करता चलूँ ।
थक गया हूँ, तेरी राहों पर चलते-चलते,
दे इज़ाज़त, तो थोड़ा आराम करता चलूँ ॥

मैं एक भटका हुआ राही, तू मेरी मंज़िल ।
तू कहे, तो ये अफ़साना ब्यां करता चलूँ ॥
तुझे ढूंढ़ने के कोशिश में, खुद को खो दिया,
तू मिले, तो खुद को भी तलाश करता चलूँ ॥

ख्वाईश यही है, फूलों से सजी रहे तू सदा,
और मैं दामन अपना, काँटों से भरता चलूँ ॥
तू हर कदम पर मेरे, रेखाये खीचंती रहे,
और मैं हर हद के दायरे को पार करता चलूँ ॥

Friday, July 2, 2010

अरमान - दिल के

उन निगाहों के आईने में नज़र आता मेरा चेहरा,
खुदा करे की ये मंज़र बरकरार, बस यूँ ही रहे ।
उफ़,ये बारिश और चमकती बिजली की गरगराहट,
और वो सीने से हमारे लिपटकर, बस यूँ ही रहे ॥

आज फिर एक लहर उम्मीद की उठ कर रह गई,
दिल के समन्दर पर आया ये तूफ़ान, बस यूँ ही रहे ।
कत्ल करके ज़िन्दा रखने का हुनर कोई उनसे सीखे,
हम पर मेहरबान उनकी ये निगाहें, बस यूँ ही रहे ॥

उनके इश्क मे हमने ज़माने की नफ़रत मोल ली,
घाटा हो या मुनाफ़ा,ये सौदा दिल का,बस यूँ ही रहे ।
उनके होठों पर मुस्कान,चाहे हो हमारे निगाहों में आँसू,
ये मासूम अरमान दिल के बरकरार, बस यूँ ही रहे ॥