Wednesday, December 8, 2010

हादसे - ज़िन्दगी के

हालात मेरी ज़िन्दगी के क्या खराब हुए,
लोगो ने मुझसे ना मिलने का दस्तूर बना डाला ।
अब क्या करे गिला खुदा से, जो मेरा घर जल गया,
बिजली ने अपनी मर्ज़ी से अपना रास्ता बदल डाला ॥

हम तो दिये की बाती की तरह जलते रहते उम्र भर,
बेवक्त की आँधी ने मगर मेरा लौ बुझा डाला ।
ज़माने के लिये हम गुनहगार ठहरे, कैसे उन्हे समझाये,
मासूम बच्चो की भूख़ ने हमे मुज़रिम बना डाला ॥

राह पर निकले थे, तो साथ अपने कारवाँ था,
वक्त के साथ मेरे साये ने भी मुझसे नाता तोड़ डाला ।
मुशकिलों से लड़ने की आदत सी मुझको हो गई थी,
मिटा सके ना जब हौसला मेरा, तो मुझे मिटा डाला ॥

Thursday, October 21, 2010

पिता

आज बहुत दिनो बाद कुछ लिख रह हूँ । पहले माफ़ी चाहूँगा कि कई दिनो तक ब्लाग जगत से दूर रहा । कहते है, "search for knowledge never ends" . दर असल, कुछ महीनो पहले PTMBA मे भर्ती हुआ । ज्यादातर, दफ़्तर से क्लास करते हुए, देर रात घर लौटता हूँ , वक्त की कमी सी महसूस होने लगी है, अब तो । ब्लाग जगत की कमी भी महसूस होने लगी । ऐसा लगता है, एक परिवार ये भी तो है । ज्यादा दिन तक दूर नहीं रह सकता । कल, समय निकालकर कुछ ब्लाग देखे । "अपनत्व" ब्लाग पर लिखी "बाबूजी" पर लेख पढ़ा । माता-पिता का स्थान कोई नहीं ले सकता । माँ, ममता का सागर और पिता, परिवार का स्तंभ, एक सायादार पेड़ जो पूरे परिवार को ज़िन्दगी की धूप से बचाता है ।
आज का यह लेख मैं दुनिया के तमाम पिताओ को समर्पित करता हूँ, जिन्होने अपना सारा जीवन खुद का सुख भुलाकर, अपने परिवार के जिम्मेदारियो को निभाने मे व्यतीत कर दिये ।

पिता

नन्हे उगंलीयों को पकड़ चलना सिखाया ।
हर डर को मन से कोसो दूर भगाया ॥
गिरा कहीं, तो उठाकर संभलना सिखाया ।
ज़िन्दगी जीने का सलीखा मुझको समझाया ॥

अपने के निगाहों मे आँसू ले, हरपल मुझे हँसाया ।
बचपन मे घोड़ा बन पीठ पर बिठाकर घुमाया ॥
खुद एक जोड़ा पहन, मुझको नये कपड़े दिलाया ।
पेड़ का साया बन, ज़िन्दगी की धूप से मुझे बचाया ॥

बेहतर परवरिश की मेरी, हर इल्म से वाकिफ़ कराया ।
क्या बुरा यहाँ, क्या भला, हर भेद मुझे बताया ॥
कुछ कर दिखाने का अरमान दिल मे जगाया ।
थका कभी जब जीवन संघर्ष मे, हौसला मेरा बढ़ाया ॥

उनके प्रति सम्मान मे, मैने अपना शीष झुकाया ।
इस दुनिया मे वो शख्श, मेरा "पिता" कहलाया ॥

Tuesday, July 27, 2010

ख्वाईश

आज मुद्दतो बाद, तेरे शहर में आया हूँ,
सोचा, तुझे ऐ ज़िन्दगी, सलाम करता चलूँ ।
थक गया हूँ, तेरी राहों पर चलते-चलते,
दे इज़ाज़त, तो थोड़ा आराम करता चलूँ ॥

मैं एक भटका हुआ राही, तू मेरी मंज़िल ।
तू कहे, तो ये अफ़साना ब्यां करता चलूँ ॥
तुझे ढूंढ़ने के कोशिश में, खुद को खो दिया,
तू मिले, तो खुद को भी तलाश करता चलूँ ॥

ख्वाईश यही है, फूलों से सजी रहे तू सदा,
और मैं दामन अपना, काँटों से भरता चलूँ ॥
तू हर कदम पर मेरे, रेखाये खीचंती रहे,
और मैं हर हद के दायरे को पार करता चलूँ ॥

Friday, July 2, 2010

अरमान - दिल के

उन निगाहों के आईने में नज़र आता मेरा चेहरा,
खुदा करे की ये मंज़र बरकरार, बस यूँ ही रहे ।
उफ़,ये बारिश और चमकती बिजली की गरगराहट,
और वो सीने से हमारे लिपटकर, बस यूँ ही रहे ॥

आज फिर एक लहर उम्मीद की उठ कर रह गई,
दिल के समन्दर पर आया ये तूफ़ान, बस यूँ ही रहे ।
कत्ल करके ज़िन्दा रखने का हुनर कोई उनसे सीखे,
हम पर मेहरबान उनकी ये निगाहें, बस यूँ ही रहे ॥

उनके इश्क मे हमने ज़माने की नफ़रत मोल ली,
घाटा हो या मुनाफ़ा,ये सौदा दिल का,बस यूँ ही रहे ।
उनके होठों पर मुस्कान,चाहे हो हमारे निगाहों में आँसू,
ये मासूम अरमान दिल के बरकरार, बस यूँ ही रहे ॥

Tuesday, June 29, 2010

शिर्डी यात्रा

हुआ दर्शन तेरा, खुले मेरे भाग्य के द्वार ।
शिर्डी वाले बाबा, तेरी महिमा अपरमपार ॥

जो जाता, तेरे गुण गाता, पाता तेरा प्यार ।
ना कोई भेद-भाव वहाँ, अनूठा तेरा संसार ॥

बहुत दिन हो गये, थोड़ा व्यस्त हो गया था, ज़िन्दगी के भाग दौड़ में । तबियत अभी ठीक है ।
पिछ्ले शनिवार को मैं शिर्डी गया था परिवार के साथ । साथ मे हमारे एक अच्छे मित्र और उनका परिवार भी था । पहली बार मैं खुद गाड़ी चलाकर गया और अगले दिन लौटा । सफर बहुत अच्छा रहा । मौसम सुहावना था । दर्शन भी अच्छे से हो गये । हाँ, थोड़ी भीड़ जरूर थी पर अच्छा लगा । पिछले महीने भी गया था, फिर जाने का मन किया, सो चल दिया । बाबा के दर्शन के बाद जो ख्याल आया वो ऊपर बयां किया । उम्मीद है, इश्वर का आशिर्वाद और आप सबका प्यार यूँ ही मिलता रहेगा ।

Saturday, May 29, 2010

दर्द - एक पिता का

मेरी ज़िन्दगी के बीते हुए उन पलो को शायद तुम भूल गये,
तुम्हारी ज़िन्दगी का गुजरा हुआ हर लम्हा लेकिन, याद है मुझे ॥
मेरे निगाहों का दर्द महसूस करना आज, शायद तुम भूल गये,
तुम्हारे होठों को छूकर जाने वाली हर मुस्कान, याद है मुझे ॥

आज मेरा हाथ पकड़कर सहारा देना, शायद तुम भूल गये,
नन्हीं उंगलियाँ पकड़कर तुम्हे चलना सिखाना, याद है मुझे ॥
मेरे साथ बैठकर दो बाते करना आज, शायद तुम भूल गये ,
तुम्हारी तोतली ज़ुबान से पहली बार पापा कहना, याद है मुझे ॥

आज मेरे लिये थोड़ा सा वक्त निकालना, शायद तुम भूल गये,
तुम्हारे साथ हर रात जागकर कहानियाँ सुनाना, याद है मुझे ॥
सफर पर निकलते वक्त आशिर्वाद लेना आज, शायद तुम भूल गये,
खुदा से तुम्हारी सलामती की दुआ माँगना आज भी, याद है मुझे ॥

ठंठ मे सिकुड़ते इस बदन पर कम्बल डालना, शायद तुम भूल गये,
वो तुम्हारे लिये हर नये फैशन के कपड़े खरीदना, याद है मुझे ॥
अपने नये मकान मे मेरे लिये जगह बनाना, शायद तुम भूल गये,
तुम्हारे पढ़ाई के लिये अपना पुशतैनी ज़मीन बेचना, याद है मुझे ॥

आज अपने से दूर भेज कर मिलने आना, शायद तुम भूल गये,
बचपन मे मेरे घर आने पर मुझसे आकर लिपटना, याद है मुझे ॥
मेरी ज़िन्दगी के बीते हुए उन पलो को शायद तुम भूल गये,
तुम्हारी ज़िन्दगी का गुजरा हुआ हर लम्हा लेकिन, याद है मुझे ॥

Saturday, May 8, 2010

माँ

खुदा की ईबादत भी कर लूंगा फ़ुरसत में ,
जरा माँ से दो बातें तो कर लूँ, इत्मीनान से ॥

कहते है, माँ का स्थान, इश्वर से भी बड़ा होता है, सच है शायद ।
कल "मदर्स डे" है, यानी माँ का दिन । मेरा खुद का ये मानना है कि कोई एक दिन माँ का नहीं हो सकता । हर दिन माँ का होता है क्योंकि माँ की दुआयें हमेशा हमारे साथ रहती है । बड़े खुशनसीब होते है वो, जिन्हे माता पिता का आशिर्वाद प्राप्त होता है और भाग्यशाली होते है वे, जिन्हे माता पिता का सेवा का अवसर प्राप्त होता है । माँ से सम्बंधित कुछ भावनायें, जो कभी मेरे मन मस्तिक मे दस्तक देती थी, उन्हे शब्दो के रूप में ढालकर, दो दो पन्क्तियाँ मे पेश कर रहा हूँ ।

खुदा की ईबादत भी कर लूंगा फ़ुरसत में ,
जरा माँ से दो बातें तो कर लूँ, इत्मीनान से ॥

रूठे ज़माना मुझसे, शायद नाराज़ हो ख़ुदा भी,
यकीन है, माँ मुझसे कभी खफ़ा नहीं होगी ।

आजकल शायद, फ्लैटो में जगह कम होती हैं ।
आजकल बेटे अपने माँओ को शहर नहीं लाते ॥

शहर आकर, हर रोज़, खाते वक्त यही सोचा किये,
रोटीयाँ तो अपने गावँ में, माँ भी रोज़ पकाती थी ॥

जब भी नींद ने मेरी निगाहों से दुशमनी कर ली ,
मेरे कानो ने माँ की लोरीयों के साथ दोस्ती कर ली ॥

बचपन मे, मैने अपने माँ के चेहरे पर तब मायूसीयत देखी थी ,
जब मेले में, मेरे खिलौने के लिये माँ के पास पैसे कम निकले॥

बेटा शायद लौटने का वादा करके, कमाने शहर को चला था ।
आज भी तकती रहती है दहलीज़ की तरफ़ बूढ़ी माँ की आँखें ॥

बेखौफ़ होकर निकल पड़ता हूँ, घर से हर सुबह ,
ढाल बनकर, मेरे साथ मेरी माँ की दुआयें रहती हैं ॥

Tuesday, April 20, 2010

नसीब

चाँद जब रात को कतरा कतरा बिखरता है ।
एक टीस इस दिल मे यूँ ही उमड़ता है ॥
शायद टूटता है, ख्वाब किसी का सहर से पहले
कोई देवदास अपने पारो से, यूँ ही बिछड़ता है ॥

जब सूरज अपनी किरण, चाँदनी से टकराता है ।
एक ज्वाला, दो दिलो के बीच भड़काता है ॥
और शायद कहीँ किसी पीपल के पेड़ तले,
कोई कान्हा अपने राधा के साथ रास रचाता है ॥

कोई भवँरा, चमन मे जब किसी कली को चूमता है।
मोहब्बत की खुशबू फ़िज़ाओ मे बिखेरता है ॥
तब शायद कहीं कोई आशिक, नीले अम्बर तले,
अपने मुमताज़ के कब्र पर तन्हा अश्क बहाता है ॥

Thursday, March 25, 2010

तलाश

मिट गई है जो अपने हाथों से, वो लकीरे ढूढ़ंते रहे ।
तराश सके हमारे तकदीर को, ऐसा कारीगर ढूढ़ंते रहे ॥
दूर होकर भी भुला ना पाया है, ये दिल उनको,
फ़ासलों के दरमियाँ हम नज़दिकीयाँ ढूढ़ंते रहे ॥

तेरे होठों पर एक मुस्कुराहट की ख्वाईश लिये,
तमाम उम्र, काटों के चमन में कलीयाँ ढूढ़ंते रहे ।
यकीन कुछ इस कदर था, तेरे वादे पर हमे,
हम अमावस की रात में पूनम का चाँद ढूढ़ंते रहे ॥

घर के आंगन मे जलता था जो चराग़ कभी,
उसकी लौ, हम शहर की बिजलियो मे ढूढ़ंते रहे ।
सिमट कर रह गई हैं ज़िन्दगी चार दिवारो में,
बन्द कमरे मे रहकर, खुला आसमान ढूढ़ंते रहे ॥

सामने था, जो रोते बच्चो को ताउम्र हसाँया किया,
और हम मंदिर-मस्ज़िद, उम्र भर, ख़ुदा को ढूढ़ंते रहे ।
आज निगाहें है ना जाने क्यों, अश्को से डबडबाई हुई,
बुढ़ापे के दहलीज़ पर, बचपन की किलकारियाँ ढूढ़ंते रहे ॥

Thursday, March 18, 2010

नाकाम मोहब्बत

परिन्दे भी अब इस शहर से रवाना हो चले ।
कि इस शहर के पेड़ो पर अब शाखे नहीं रही ॥

जो तुमको देख कर जी बहला लेते थे कभी,
इस चेहरे पर अब वो निगाहें नहीं रही ॥

आज हर तरफ़ हैं अन्धेरा अपनी बाहें फैलाये हुए,
राह दिखलाती जो, वो रोशनी की किरणे नहीं रही ॥

छोड़ कर चल देना तुम्हारा, यूँ बेबस मुझको, मुनासिब था,
जो तुमको लगाये रखे सीने से, अब वो बाहें नहीं रही ॥

अब तो बिछड़ने का गम और ये लाचार सन्नाटा है घेरे हुए,
दिल को बहलाती हुई तुम्हारी वो मोहब्बत की बातें नहीं रही ॥

दफ़्न कर रहे हैं मुझे मेरी यादों के साथ, अब कैसे कहे उनसे ।
हर साँस कर रही थी उनका इन्तेज़ार,कि अब साँसें नहीं रही ॥

Tuesday, March 9, 2010

" नारी " - महिला दिवस के उपलक्ष में

नारी कोमल भी, नारी शक्ति भी,
नारी इश्वर मे लीन भक्ति भी ।
नारी बेटी, बहन, माँ और पत्नी का प्यार भी,
नारी अपने में सिमटा पूरा संसार भी ॥

बेटी बन, पिता की इज़्जत पर आँच ना आने दिया ।
बहन बन, भाई के पास किसी बला को ना जाने दिया ॥
पत्नी बन, पति का जीवन सँवार दिया ।
और माँ बन, सारी बलाईयाँ अपने सर लिया ।

भूखे पेट रहकर, परिवार को खिलाने की ममता नारी में।
निगाहों मे अश्क लेकर मुस्कुराने की क्षमता नारी में ॥
मैका भुलाकर, ससुराल को अपनाने का ज़ज्बा नारी में ।
सुहाग के लिये, यमराज से टकराने का हौसला नारी में ॥

ज़िन्दगी मे नारी की मर्यादा का मान किजीये ।
सरेबाज़ार ना उसकी आबरू कभी निलाम किजीये ॥
वक्त के साथ बेटी ही होती हैं, माँ की ममता का रूप,
जन्म लेने से पहले उसके कफ़न का ना इन्तेजाम किजीये ॥

Saturday, March 6, 2010

नादान ख़्वाब मेरे

कुछ ख़्वाब मेरे निगाहों से कहीं खो गये हैं
गर तुम्हे दिखे कहीं, तो मुझे लौटा देना ।
नादान ख़्वाब मेरे, छोटे छोटे, परेशान से,
गर तुम्हे मिले कहीं, तो मुझे लौटा देना ॥

था बसाया एक छोटा सा संसार कहीं,
थी खुशीयां वहाँ पर, कोई गम नहीं ।
गर चलते चलते पँहुच जाओ वहाँ कभी,
तो पता वहाँ का मुझे भी बता देना ।।

ज़्यादा बड़े नहीं थे वो, थे मासूम वो ,
एक अमन की आस, एक प्यार की प्यास ।
गर तुम्हे मिल जाये कहीं दोनों, बेबस, लाचार,
तो मुझसे भी उन्हें मिला देना ॥

वो मेरी निगाहों मे बसी तुम्हारी परछाई ।
वो तुमसे ज़ुदा हो कर मेरी तन्हाई ॥
गर मिलकर सुनायें तुमको मेरी दास्ताँ कहीं ,
तो मुझे भी उस महफ़िल मे बुला लेना ॥

है वो दुनियादारी से बेखबर, अनजान ।
नहीं उन्हें, भले-बुरे की कुछ पहचान ॥
अश्क बनकर, निगाहों से छलके, खो गये,
गर तुम्हे दिखे कहीं, तो मुझे लौटा देना ।

कुछ ख़्वाब मेरे निगाहों से कहीं खो गये हैं।
गर तुम्हे मिले कहीं, तो मुझे लौटा देना ॥

Monday, March 1, 2010

दिल की भावनायें - होली में

आया फागुन का महिना और होली का पावन त्योहार ।
आओ खोलें हम सब, अपने- अपने दिल के बंद द्वार ॥
हिंसा को करके विदा, दे अमन और भाईचारे को निमंत्रन ।
आओ बाँटे हमसब मिलकर, इस दुनियाँ मे प्यार ॥

अबीर उड़े, गुलाल उड़े, हो आकाश पर रंगो की बौछार ।
सबको मिले इस जहाँ में, दामन भर खुशीयाँ बेशुमार ॥
अब लहू का रंग ना मिले, इन पाक रंगो मे ,
ना रहे इन्सानों मे दिल में, अब नफ़रत की दीवार ॥

ज़िन्दगी मे किसी के गम ना हो, रहे खुशियाँ हजार ।
अश्क लेकर मुस्कान बाँटें, हो सबके ये नेक विचार ॥
भाई, भाई की ज़ान न ले, बेटे ना करे माँ-बाप को बेघर,
मिलकर रहे सब, ना हो किसी रिश्ते में फूट की दरार ॥

थक गयी माँ जननी, सहते-सहते ये बेवज़ह मानव संहार ।
मत डालो, लहू का लाल रंग मुझपर, करे दुखियारी पुकार ॥
हरीयाली रहे बदन पर, रहे सर पर श्वेत पर्वतो का ताज़ ।
माँ की आँचल की छाया मिले, मिले सबको जननी का दुलार ॥

यही प्रार्थना मेरी, यही मेरे मन के विचार ।
मिले सबको धन, यश, सुकूऩ और प्यार बेशुमार ॥
हो जीवन मे आपके आशा के रंगों की बौछार ।
बधाई आप सबको, मुबाऱक होली का त्योहार ॥

Wednesday, February 17, 2010

बाघ के दिल से

कभी तुम थर्र-थर्र कापाँ करते थें हमारी गर्जना से,
आज हम तुम्हारी कदमों की आहट से घबराते हैं ।
कभी तुम नज़रे नहीं मिला पाते थें हमारी नज़र से,
आज हम तुम्हारा सामना करने से कतराते हैं ॥

कभी तुम जागा करते थें रातो को, हमारे खौफ़ से,
आज हम अपने बच्चो को सीने से लगाये रहते हैं ।
सोते हो तुम चैन से, ईट-पत्थरों से बनायें हुए घर पे,
और हम खुले जंगलों मे भागे- भागे फिरते हैं ॥

कभी हम एक, भारी पड़ते थें, तुम्हारे जैसे सैकड़ो पर,
आज तुम्हारी एक गोली से ज़ान बचाकर भागते हैं ।
हमने जब भी संहार किया, मज़बूरी में, पेट के खातिर किया,
पर तुम्हारे जैसे, हमको मार कर दिवार पर सजाते हैं ॥

यूँ तो, कहने को, हम इस देश मे राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं ।
पर, बाशिन्दे यहाँ के, हमारे ही खालो का सौदा करते हैं ॥
सुना हैं, अब हम, एक हज़ार चार सौ ग्यारह, ही जीवित बचे हैं ।
आज तुमसे ज़िन्दगी की भीख नहीं, इन्सानियत का दावा करते हैं ॥

Tuesday, February 16, 2010

एक सवाल तुमसे

वो प्यार तुम्हारा मुझसे, था पूरा, या आधा सच था तुम्हारा ।
वो मुझको अपना कहना, था पूरा, या आधा सच था तुम्हारा ॥
वो स्पर्श, वो आलिंगन, वो कोमल हाथों की छुवन ।
वो तुम्हारा मुझ में समाना, था पूरा, या आधा सच था तुम्हारा ॥

वो साथ चलना, वो मुझे गिरते हुए सम्हालना, वो हौसला बढ़ाना ।
वो वादा तुम्हारा मुझसे, था पूरा, या आधा सच था तुम्हारा ॥
वो तुम्हारे निगाहों मे स्वप्न मेरे, वो उन्हे पूरे करने की कस्में ।
वो आँसूओं से भरा पैमाना, था पूरा, या आधा सच था तुम्हारा ॥

वो हँसना, खिलखिलाना, वो मिलकर ज़िन्दगी कि किताब पढ़्ना ।
वो रूठना-मनाना तुम्हारा, था पूरा, या आधा सच था तुम्हारा ॥
वो कभी शर्म से निगाहें झुकाना, कभी बेखौफ़ बाहों में समाना ।
वो मेरे लिये दुनिया ठुकराना, था पूरा, या आधा सच था तुम्हारा ॥

वो एक मोड़ पर तुम्हारा ज़ुदा होना, मेरा उस मोड़ पर इन्तज़ार करना ।
वो तुम्हारा लौटने का वादा, था पूरा, या आधा सच था तुम्हारा ॥
आ जाओ की अब साँसों से रिशता भी खत्म होने को हैं ।
यकीन कर लूँ, तुम्हारा वादा, था पूरा, नहीं आधा सच था तुम्हारा ॥

Friday, February 5, 2010

तुम्हारी याद

रात्री के गहन अन्धकार मे, जब ये सारा जग सो जाता है,
मेरे इन थकी हारी आँखों को नींद क्यों नहीं आती ।
ढ़ूढ़्तीं रहती है, ना जाने पुराने यादों की गठरी मे कोई सामान,
यादों की यह बोझ, मेरे ज़हन से, क्यों नहीं जाती ॥

क्यों ढूढ़ता रहता हूँ, वो धूल की परत हटाकर,
तुम्हारी तस्वीर में, तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारा प्यार,
तुम्हारा स्पर्श, तुम्हारी अदा, तुम्हारा कोमल एहसास,
क्यों तुम बेज़ान तस्वीर से बाहर निकलकर नहीं आती ॥

तुम थी, तो रात के अन्धेरें को चीरकर रख दिया था,
तुम्हारे माथे की छोटी बिन्दियां की वो किरण ।
तुम थी, तो रात को जागने को तत्पर रह्ता था मन,
क्यों तुम अब, आसूँओं के ज़रिये भी निगाहों मे नहीं आती ॥

इस रात मे जब चादँ भी अपनी चाँदनी ओढ़कर सो जाता है ,
जब हर शै यहाँ, अपने सपनों की दुनिया मे खो जाता है ।
थमी हुई, इस महफ़िल, मे जब सुनाई देती है खामोंशिया भी,
मेरे इन कानो मे तुम्हारी कोई सदा, क्यों नहीं आती ॥

रात्री के गहन अन्धकार मे, जब ये सारा जग सो जाता है,
मेरे इन थकी हारी आँखों को नींद क्यों नहीं आती ।

Monday, February 1, 2010

क्या क्या ना भूला, ज़िन्दगी में

कल, टेलिविशन के एक चेनेल (सब) पर "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" देख रहा था। ये सीरियल मुझे अच्छा लगता है, क्योंकी यह एक पारीवारिक माहौल दर्शाता हैं । जो बात मुझे छू गयी, वो यह कि, जब मैने सीरिअल में बच्चो को गुड्डो - गुड़ीयों का खेल व्याह रचाते हुए देखा । अचानक ज़हन मे आया, इतनी सादगी, बच्चो मे कहाँ हैं ? बाकी हर चेनेल पर बच्चे या तो नये फ़िल्मी गानो मे मटकते हुए मिलेंगे या फिर बड़ो जैसे जोक्स दोहराते हुए मिलेंगे । वैसे, उनको क्या दोश दे, हम खुद कितना कुछ इस भाग - दौड़ भरी ज़िन्दगी में भूल गये । बच्चे तो कोमल, निर्झर जल की तरह होते हैं, जिस साँचे मे ढाले जायेगें, वैसे ही ढलेंगे ।

पर मै यह सोचने पर मज़बूर हो गया, कि, क्या - क्या ना भूला इस ज़िन्दगी मे । नीचे दी हुई निम्नलिखित पंक्तियों मे कुछ दिल की खोई हुई चीज़े हैं, जिसका मुझे आज अफ़सोस होता है ।

क्या क्या ना भूला, ज़िन्दगी में

ज़िन्दगी की भाग दौड़ में,
हम रुक कर सम्भलना भूल गये ।

आगे बढ़्ने की ज़द्दोज़हद में,
पीछे मुड़्कर देखना भूल गये ॥

सबको देखकर मुस्कुराने की आदत हो गई,
मगर, जी खोल कर हसंना भूल गये ।

सात समन्दर पार कर लिया, मगर,
काग़ज की कश्ती बनाना भूल गये ॥

कभी, तारे गिन गिन कर रात जागा करते थे,
अब तो आसमाँ की तरफ़ देखना भूल गये ॥

ईमारतो और गाड़ीयों में कट रही ज़िन्दगी,
अब हम पैदल घास पर चलना भूल गये ।

यूँ तो मँज़िल दर मँज़िल पार करते रहे,
और अपने घर का रास्ता भूल गये ॥

पराये को अपनाने की चाहत में ,
हम अपनो से मिलना भूल गये ।

मिलते रहे लोगों से हाथ से हाथ बढ़ाकर,
हाथ जोड़ कर अभिनंदन करना भूल गये ।।

डर रहे हैं हम आंतकियों से, लुटेरो से,
मगर, भगवान से डरना भूल गये ।

घर, दफ़्तर, होटलो में सिमटकर रह गई ज़िन्दगी,
और मंदिर की घन्टी बजाना भूल गये ॥

दुनियादारी निभाने में इतना मशगुल हुए,
माँ - बाप का खयाल रखना भूल गये ।

अपने होंठों पर मुस्कान चाहते रहे सदा,
दूसरो की आँखों से आँसू पोछना भूल गये ॥

’गुड लक’ कह्कर भेज दिया, इन्तिहान में बेटे को,
उसके माथे पर, दही का टीका लगाना भूल गये ।

सजाया घर को खरीदे हुए गुलदस्तों से, मगर,
अपने आँगन मे तुलसी का पौधा लगाना भूल गये ॥

ज़िन्दगी की भाग दौड़ में,
हम रुक कर सम्भलना भूल गये ॥

Friday, January 29, 2010

बस य़ूँ ही ...

लो अब महंगी ज़िन्दगी और मौत सस्ती हो चली ।
शहर को रवाना हुए लोग, कि खाली बस्ती हो चली ॥


मुफ़लिसी ने इन होठों की मुस्कुराहट छीन ली , लेकिन,
मेरे अश्को का कोई दावेदार नहीं, दिल को ये तसल्ली हो चली ॥

यारो ने यारी निभाई कुछ इस तरह , ऐ मेरे रकीब ,
कि इस ज़हां मे, अब हमारी, दुश्मनो से दोस्ती हो चली ॥

हर शख्स है अपने ही बनाये हुए, ख्वाबो-खयालो मे रहता हुआ ।
हर किसी के लिये, ये दुनिया देखो, छोटी हो चली ॥

जिस आँगन मे गूंजा करती थी कभी सदा, किलकारियों की ,
देखो वो घर भी,उन यादों के साथ, आज निलाम हो चली ॥

चन्द साँसों को समेटकर रखा था,इस दिल मे, बड़े ऐख्तियार से,
लो वो भी आज, तुमहारे बिछरते ही, बेवफ़ा हो चली ॥

Tuesday, January 26, 2010

आप सबको गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें ।

आओ हम सब मिलकर एक नया भारत बनायें ।

Thursday, January 21, 2010

एक दुआ, ख़ुदा से..

ज़िन्दगी जीने का सलीखा़ सिखा दे, ऐ मौला ।
काँटों भरे चमन मे एक गुल खिला दे, ऐ मौला ॥
तेरी रहमत पर हमें कोई शक नहीं हैं, लेकिन,
मेरे होठों को भी एक मुस्कान दिला दे, ऐ मौला ॥


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किसी ने उसे हिन्दू , किसी ने मुसलमान कहा ।
बनाने वाले खुदा ने, लेकिन, उसे इन्सान कहा ॥


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Wednesday, January 20, 2010

कुछ और दिल की बातें

देखिये ना इन मदभरी निगाहों से हमें,
ना जाने क्या खता हो जाए ।
हम दिवाने होकर भटकते फिरे ,
और आप किसी ग़ैर की हो जाए ॥


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देखा है हमने भी ज़न्नत को ख्वा़बो मे अकसर ।
फिर भी हमें उनका मुस्कुराना बेहतर लगा ।।


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बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं ।
जो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ॥


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बसंत पचंमी के शुभ अवसर पर सबको बहुत बहुत शुभकामनायें. धन्यवाद.

Monday, January 18, 2010

इरादा

नये साल में, चुन लीं हैं नई मन्ज़िलें।
नये पंख लगाये, उड़ चले पुराने परिन्दें ॥
नये ज़माने मे नया इतिहास रचने वाले ।
आसमान को छूने का दावा करने वाले ॥

अब तक जो होता रहा, अब ना हो पायेगा।
ज़ुल्म के आगे, कोई सर ना झुक पायेगा ॥
संभल जाओ, ऐ ज़ुल्म के ठेकेदारों,
हम आ गये हैं, वक्त को बदलने वाले ॥

हर चेहरे पर मुस्कान लाने का इरादा हैं ।
हर आँख से आँसू पोछने का वादा हैं ॥
अब हर अंधेरा मिटाने का ठाना हैं ।
हम रात के सीने से उज़ाला छीनने वाले ॥

काँटों पर चलकर फूलों की मंज़िल पाना हैं ।
अब किया हुआ हर वादा निभाना हैं ॥
अब ज़िन्दगी को दाँव पर लगाना हैं ।
हम हैं सर पर कफ़न बाँध कर निकलने वाले ॥

Saturday, January 16, 2010

दिल की बातें

उन्होंने मोहब्बत को खेल, दिल को एक खिलौंना समझा ।
ठोकर खाकर भी, एक बेवफ़ा को हमनें अपना समझा ॥
दिल को जाना था, गया, अब ज़ान पर बन आई है ।
फिर भी उनके हर सितम को हमने अदा समझा ॥


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अपने चहरे पर आप यूँ नक़ाब ना लगाईये ।
चेहरा छुपाकर इस दिल में आग़ ना लगाईये ॥
जल जाने का हमें कोई ग़म नहीं है, लेकिन,
ख़ुद पर आप ये इल्ज़ाम तो ना लगाईये ॥

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Friday, January 15, 2010

मुलाक़ात

हकीक़त में मिले उनसे, ऐसी हमारी क़िस्मत कहाँ ।
मुलाकात भी की हमने, तो ख्वाबो़ में की ॥
टूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से ,
गुफ़्तगू भी की हमने , तो निगाहों से की ॥

Thursday, January 14, 2010

तलाश

ज़िन्दगी माँग रही है मुझसे, हर पल का हिसाब।
और मैं, उन पलो में अपनी उम्र तलाश कर रहा हूँ ।।
यूँ तो दुनियाँ में मेरी पहचान, मेरे नाम से हैं ।
और मैं, अपने नाम में अपना वज़ूद तलाश कर रहा हूँ।।
कल मैने कुछ शब्दो के ज़रिये अपने भावनाओ को रखा था।
माफ़ी चाहूँगा, कुछ तकनीकी कारण से वो पोस्ट शायद सही से छप नहीं पाया और ऐसा लगता था की शब्द बार बार दोहराये जा रहे है । अत: , मैं फिर से उसको दोबारा पेश कर रहा हूँ। त्रुटी के लिये क्षमा प्रार्थी ।

भटकता राही
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अज़नबी शहर में, अकेला भटक रहा हूँ मैं ।
अन्जान राहों में, अकेला भटक रहा हूँ मैं ।।
ठहरे हुए इन हवाओ में , बेवज़ह ,
श्वास तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।

पत्थर के मकान, पत्थर के भगवान ।
मिला जो भी यहाँ, वो भी पत्थर जैसा ।।
पत्थर की हर मूरत में , बेवज़ह ,
धरकन तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।

समन्दर है ठहरा हुआ, हवायें हैं रूकी हुई ।
फूल है मुर्झाये हुए, ओस हैं पत्थराई हुई ।।
मरघट से इस आलम में , बेवज़ह ,
ज़िन्दगी तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।

Tuesday, January 12, 2010

हौसला

हालात से लड़कर तकदीर बदलने का इरादा रखते है !
हम तुफानो में भी कश्ती उतारने का हौसला रखते है !!
बाजू काटकर , हमे कमज़ोर ना समझ, ए नासमझ ,
हम ताकत अपने हाथों में नहीं , जिगर में रखते है !!

एक सवाल ख़ुदा से

तेरे जहाँ में , ए ख़ुदा , ऐसा घर भी है कहीं?
की जिसमे, ग़म के कदमो की आहट न हो !
तेरे जहाँ में, ए ख़ुदा, ऐसी निगाहे भी है कहीं ?
की जिसमे, अश्को का सैलाब न हो !
तेरे चमन में , ए ख़ुदा , ऐसी कली भी है कहीं ?
की जिसके दामन में एक काँटा न हो?
तेरे दिए हुए हर सांस में , एक पल भी है कहीं ?
की जिस पर मौत का साया न हो ?
तेरे बनाये हुए दिल में , ऐसा है क्यों नहीं ?
की नफरत के लिए जिसमे जगह न हो !
ऐसा है क्यों नहीं ?
ऐसा है क्यों नहीं ?

Friday, January 8, 2010

वो जो थे मेरी मुट्ठी में बंद चन्द रेखाए ,

उनको भी चुराकर ले गया कोई ।

लिखी थी जो दास्तान दिल की एक कोरे कागज़ पर ,

रात के अँधेरे में उन्हें मिटा गया कोई ।

रखे थे निगाहों में छुपाकर कुछ आंसू अपने जिगर के ,

चुपके से आकर मुझको रुला गया कोई । ।