Friday, February 5, 2010

तुम्हारी याद

रात्री के गहन अन्धकार मे, जब ये सारा जग सो जाता है,
मेरे इन थकी हारी आँखों को नींद क्यों नहीं आती ।
ढ़ूढ़्तीं रहती है, ना जाने पुराने यादों की गठरी मे कोई सामान,
यादों की यह बोझ, मेरे ज़हन से, क्यों नहीं जाती ॥

क्यों ढूढ़ता रहता हूँ, वो धूल की परत हटाकर,
तुम्हारी तस्वीर में, तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारा प्यार,
तुम्हारा स्पर्श, तुम्हारी अदा, तुम्हारा कोमल एहसास,
क्यों तुम बेज़ान तस्वीर से बाहर निकलकर नहीं आती ॥

तुम थी, तो रात के अन्धेरें को चीरकर रख दिया था,
तुम्हारे माथे की छोटी बिन्दियां की वो किरण ।
तुम थी, तो रात को जागने को तत्पर रह्ता था मन,
क्यों तुम अब, आसूँओं के ज़रिये भी निगाहों मे नहीं आती ॥

इस रात मे जब चादँ भी अपनी चाँदनी ओढ़कर सो जाता है ,
जब हर शै यहाँ, अपने सपनों की दुनिया मे खो जाता है ।
थमी हुई, इस महफ़िल, मे जब सुनाई देती है खामोंशिया भी,
मेरे इन कानो मे तुम्हारी कोई सदा, क्यों नहीं आती ॥

रात्री के गहन अन्धकार मे, जब ये सारा जग सो जाता है,
मेरे इन थकी हारी आँखों को नींद क्यों नहीं आती ।

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