Thursday, October 21, 2010

पिता

आज बहुत दिनो बाद कुछ लिख रह हूँ । पहले माफ़ी चाहूँगा कि कई दिनो तक ब्लाग जगत से दूर रहा । कहते है, "search for knowledge never ends" . दर असल, कुछ महीनो पहले PTMBA मे भर्ती हुआ । ज्यादातर, दफ़्तर से क्लास करते हुए, देर रात घर लौटता हूँ , वक्त की कमी सी महसूस होने लगी है, अब तो । ब्लाग जगत की कमी भी महसूस होने लगी । ऐसा लगता है, एक परिवार ये भी तो है । ज्यादा दिन तक दूर नहीं रह सकता । कल, समय निकालकर कुछ ब्लाग देखे । "अपनत्व" ब्लाग पर लिखी "बाबूजी" पर लेख पढ़ा । माता-पिता का स्थान कोई नहीं ले सकता । माँ, ममता का सागर और पिता, परिवार का स्तंभ, एक सायादार पेड़ जो पूरे परिवार को ज़िन्दगी की धूप से बचाता है ।
आज का यह लेख मैं दुनिया के तमाम पिताओ को समर्पित करता हूँ, जिन्होने अपना सारा जीवन खुद का सुख भुलाकर, अपने परिवार के जिम्मेदारियो को निभाने मे व्यतीत कर दिये ।

पिता

नन्हे उगंलीयों को पकड़ चलना सिखाया ।
हर डर को मन से कोसो दूर भगाया ॥
गिरा कहीं, तो उठाकर संभलना सिखाया ।
ज़िन्दगी जीने का सलीखा मुझको समझाया ॥

अपने के निगाहों मे आँसू ले, हरपल मुझे हँसाया ।
बचपन मे घोड़ा बन पीठ पर बिठाकर घुमाया ॥
खुद एक जोड़ा पहन, मुझको नये कपड़े दिलाया ।
पेड़ का साया बन, ज़िन्दगी की धूप से मुझे बचाया ॥

बेहतर परवरिश की मेरी, हर इल्म से वाकिफ़ कराया ।
क्या बुरा यहाँ, क्या भला, हर भेद मुझे बताया ॥
कुछ कर दिखाने का अरमान दिल मे जगाया ।
थका कभी जब जीवन संघर्ष मे, हौसला मेरा बढ़ाया ॥

उनके प्रति सम्मान मे, मैने अपना शीष झुकाया ।
इस दुनिया मे वो शख्श, मेरा "पिता" कहलाया ॥