Tuesday, April 20, 2010

नसीब

चाँद जब रात को कतरा कतरा बिखरता है ।
एक टीस इस दिल मे यूँ ही उमड़ता है ॥
शायद टूटता है, ख्वाब किसी का सहर से पहले
कोई देवदास अपने पारो से, यूँ ही बिछड़ता है ॥

जब सूरज अपनी किरण, चाँदनी से टकराता है ।
एक ज्वाला, दो दिलो के बीच भड़काता है ॥
और शायद कहीँ किसी पीपल के पेड़ तले,
कोई कान्हा अपने राधा के साथ रास रचाता है ॥

कोई भवँरा, चमन मे जब किसी कली को चूमता है।
मोहब्बत की खुशबू फ़िज़ाओ मे बिखेरता है ॥
तब शायद कहीं कोई आशिक, नीले अम्बर तले,
अपने मुमताज़ के कब्र पर तन्हा अश्क बहाता है ॥