परिन्दे भी अब इस शहर से रवाना हो चले ।
कि इस शहर के पेड़ो पर अब शाखे नहीं रही ॥
जो तुमको देख कर जी बहला लेते थे कभी,
इस चेहरे पर अब वो निगाहें नहीं रही ॥
आज हर तरफ़ हैं अन्धेरा अपनी बाहें फैलाये हुए,
राह दिखलाती जो, वो रोशनी की किरणे नहीं रही ॥
छोड़ कर चल देना तुम्हारा, यूँ बेबस मुझको, मुनासिब था,
जो तुमको लगाये रखे सीने से, अब वो बाहें नहीं रही ॥
अब तो बिछड़ने का गम और ये लाचार सन्नाटा है घेरे हुए,
दिल को बहलाती हुई तुम्हारी वो मोहब्बत की बातें नहीं रही ॥
दफ़्न कर रहे हैं मुझे मेरी यादों के साथ, अब कैसे कहे उनसे ।
हर साँस कर रही थी उनका इन्तेज़ार,कि अब साँसें नहीं रही ॥
har pankti dil ko choo jatee hai.........aisee pratiksha ab kanha.....:?
ReplyDeleteab to too nahee aur sahee ka jamana aa gaya hai.................
aap poore dil se likhate hai bahut accha lagata hai aapke blog par aana.....
shubhkamnae................
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteek bahut hi behatareen gazal,khoobsurat prastuti,
ReplyDeleteaabhar.
हर शेर दिल से निकला है ... बहुत लाजवाब ...
ReplyDeleteब तो बिछड़ने का गम और ये लाचार सन्नाटा है घेरे हुए,
ReplyDeleteदिल को बहलाती हुई तुम्हारी वो मोहब्बत की बातें नहीं रही ॥
दफ़्न कर रहे हैं मुझे मेरी यादों के साथ, अब कैसे कहे उनसे ।
हर साँस कर रही थी उनका इन्तेज़ार,कि अब साँसें नहीं रही ॥
bahut hi sundar