भाव सुन्दर हैं। छंद के अनुसार मात्रा सहेजने की आवश्यकता है। आपने जो रचना लिखी है वह दोहा छंद में बंधी है। दोहे में ग्यारह और तेरह मात्राएं होती है। इन दोहों का एक संशोधित रूप निम्नलिखत भी हो सकता है।
धरती पैरों तले हो, सिर पर महा वितान। भूख हेतु हों रोटियाँ, क्यों ज़्यादा हलकान? ---------+--------+----------+------------- मिट्टी मिले उसूल सब, राज करे शैतान। क्यों चुप्पी साधे हुए, देख रहा भगवान? ========================== प्रयास जारी रखिए। आगे और भी अच्छी रचनाएं आप लिखेंगे। मंगलकामनाओ सहित. सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
क्या किया जाए..चाहतों और हसरतों की सीमा ही नही....ख्वाहिशें ठहरी कब हैं....और आज के युग में एक रावण हो तो उससे सुरक्षा के लिए भगवान आएं भी पर कहां तक-कितने रावण-कंसों और राक्षसों को वो मारेगा..थककर बैठा है...उनके हिसाब से अभी पाप और बढ़ेगा ये उनका पैरामीटर है शायद..तब वो चुप नहीं बैठेंगे...जरूर आएंगे.. कहीं न कहीं मन में ये एक विश्वास है...
बहुत सुन्दर भाव और सोच..इंसान जिसकी भूख मिट ही नहीं और और....... की चाह बढती ही जा रही है, संतोष कहाँ है उसे? और भगवान के बारे में कहते हैं न उसके घर देर तो है अंधेर नहीं देखो पाप का घड़ा कब तक भरता है.. कम शब्दों में बहुत गहरी बात.....
ab swasthy me sudhar hai aur kaise ho. maine aaj ek arse baad laptop touch kiya hai . abhee thoda easy lena hai. rachana gahanta liye hai lagta hai kahee upar bhee ghotale to nahee hone lage ? kahee bhagvan bhee ab sone heere ke mukuto kee chah to nahee rakhne lage?
दोनों एक दुसरे के पूरक हैं ....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ...आगे भी ऐसे मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी ...
भूख मिटाने को दो रोटी, इससे ज़्यादा क्यों चाहे इन्सान ॥
ReplyDeletevery nice dipayan ji
बहुत सुन्दर,दोनों एक दुसरे के पूरक हैं| धन्यवाद|
ReplyDeleteभाव सुन्दर हैं। छंद के अनुसार मात्रा सहेजने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteआपने जो रचना लिखी है वह दोहा छंद में बंधी है। दोहे में ग्यारह और तेरह मात्राएं होती है। इन दोहों का एक संशोधित रूप निम्नलिखत भी हो सकता है।
धरती पैरों तले हो, सिर पर महा वितान।
भूख हेतु हों रोटियाँ, क्यों ज़्यादा हलकान?
---------+--------+----------+-------------
मिट्टी मिले उसूल सब, राज करे शैतान।
क्यों चुप्पी साधे हुए, देख रहा भगवान?
==========================
प्रयास जारी रखिए। आगे और भी अच्छी रचनाएं आप लिखेंगे।
मंगलकामनाओ सहित.
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
बहुत बढ़िया सोच और रचना
ReplyDeleteपैरो तले रहे ज़मीन, सर के उपर हो आसमान ।
ReplyDeleteभूख मिटाने को दो रोटी, इससे ज़्यादा क्यों चाहे इन्सान ॥
...behtarin........
क्या किया जाए..चाहतों और हसरतों की सीमा ही नही....ख्वाहिशें ठहरी कब हैं....और आज के युग में एक रावण हो तो उससे सुरक्षा के लिए भगवान आएं भी पर कहां तक-कितने रावण-कंसों और राक्षसों को वो मारेगा..थककर बैठा है...उनके हिसाब से अभी पाप और बढ़ेगा ये उनका पैरामीटर है शायद..तब वो चुप नहीं बैठेंगे...जरूर आएंगे.. कहीं न कहीं मन में ये एक विश्वास है...
ReplyDeleteवाह ... दोनों शेरों का जवाब नहीं ... एक दुसरे से प्रश्न करते हुवा ... लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और सोच..इंसान जिसकी भूख मिट ही नहीं और और....... की चाह बढती ही जा रही है, संतोष कहाँ है उसे? और भगवान के बारे में कहते हैं न उसके घर देर तो है अंधेर नहीं देखो पाप का घड़ा कब तक भरता है.. कम शब्दों में बहुत गहरी बात.....
ReplyDeleteदोनों सटीक और सही
ReplyDeleteवृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर said...
ReplyDeleteडॉ. डंडा लखनवी जी के दो दोहे
माननीय डॉ. डंडा लखनवी जी ने वृक्ष लगाने वाले प्रकृतिप्रेमियों को प्रोत्साहित करते हुए लिखा है-
इन्हें कारखाना कहें, अथवा लघु उद्योग।
प्राण-वायु के जनक ये, अद्भुत इनके योग॥
वृक्ष रोप करके किया, खुद पर भी उपकार।
पुण्य आगमन का खुला, एक अनूठा द्वार॥
इस अमूल्य टिप्पणी के लिये हम उनके आभारी हैं।
http://pathkesathi.blogspot.com/
http://vriksharopan.blogspot.com/
बहुत सुन्दर ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ab swasthy me sudhar hai aur kaise ho.
ReplyDeletemaine aaj ek arse baad laptop touch kiya hai .
abhee thoda easy lena hai.
rachana gahanta liye hai lagta hai kahee upar bhee ghotale to nahee hone lage ?
kahee bhagvan bhee ab sone heere ke mukuto kee chah to nahee rakhne lage?
ek dum sahi kaha aapane
ReplyDeletebahut khoob
nice blog
chek out mine
http://iamhereonlyforu.blogspot.com
दो शेरों के बहाने दुनिया भर की बात कह दी आपने। बधाई।
ReplyDelete---------
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
बदल दीजिए प्रेम की परिभाषा...
kanha ho ? kaise ho ?
ReplyDeleteMBA ho gaya kya ?
Best wishes .