हालात मेरी ज़िन्दगी के क्या खराब हुए,
लोगो ने मुझसे ना मिलने का दस्तूर बना डाला ।
अब क्या करे गिला खुदा से, जो मेरा घर जल गया,
बिजली ने अपनी मर्ज़ी से अपना रास्ता बदल डाला ॥
हम तो दिये की बाती की तरह जलते रहते उम्र भर,
बेवक्त की आँधी ने मगर मेरा लौ बुझा डाला ।
ज़माने के लिये हम गुनहगार ठहरे, कैसे उन्हे समझाये,
मासूम बच्चो की भूख़ ने हमे मुज़रिम बना डाला ॥
राह पर निकले थे, तो साथ अपने कारवाँ था,
वक्त के साथ मेरे साये ने भी मुझसे नाता तोड़ डाला ।
मुशकिलों से लड़ने की आदत सी मुझको हो गई थी,
मिटा सके ना जब हौसला मेरा, तो मुझे मिटा डाला ॥
दुनिया का दस्तूर यही है। वो हमेशा आगे चलने वालों को मिटाने की फिराक मे रहती है। लेकिन अपने हौसले हमेशा ही बुलन्द रखने चाहिये। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDeleteमेरा नया बसेरा.......
blog jagat ke rishte aise hote hai bitiya kee knee surgery ke samay tumharee slip disc ko le chinta man me ho aaee thee.......
ReplyDeletestudies kaisee chal rahee hai..........?pgmba kee.
housale buland ho to toofan bhee rukh badal lete hai.......aazma ke dekhana........
positive attitude bahut jarooree hai.........
all the best
allways
दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteअनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
ekdam theek baat bari sunderta ke saath likha hai aapne.
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
ReplyDelete.
ReplyDeleteयही दस्तूर है।
उन्हें अपने दस्तूर निभाने दीजिये। आप अपने हौसलों को बुलंद रखिये। जिनके हौसले बुलंद होते हैं , उनकी राहें अक्सर काँटों से भरी होती हैं।
मुश्किलें ही हौसलों को बुलंद करती जाती हैं।
एक सार्थक रचना के लिए बधाई।
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kya bat hain
ReplyDeletebahut hi sundar rachana
mere blog ko visit karne k liye dhanaywad
aapako agar mera blog accha laga ho to follow kare
nice poetic sense prevails .
ReplyDeletethanks for visiting my blog.salaam.
हम तो दिये की बाती की तरह जलते रहते उम्र भर,
ReplyDeleteबेवक्त की आँधी ने मगर मेरा लौ बुझा डाला ।
ज़माने के लिये हम गुनहगार ठहरे, कैसे उन्हे समझाये,
मासूम बच्चो की भूख़ ने हमे मुज़रिम बना डाला ॥
सुन्दर रचना
एक सार्थक रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
मुशकिलों से लड़ने की आदत सी मुझको हो गई थी,
ReplyDeleteमिटा सके ना जब हौसला मेरा, तो मुझे मिटा डाला ॥
वाह क्या बात है ! बढ़िया !