Thursday, January 21, 2010

एक दुआ, ख़ुदा से..

ज़िन्दगी जीने का सलीखा़ सिखा दे, ऐ मौला ।
काँटों भरे चमन मे एक गुल खिला दे, ऐ मौला ॥
तेरी रहमत पर हमें कोई शक नहीं हैं, लेकिन,
मेरे होठों को भी एक मुस्कान दिला दे, ऐ मौला ॥


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किसी ने उसे हिन्दू , किसी ने मुसलमान कहा ।
बनाने वाले खुदा ने, लेकिन, उसे इन्सान कहा ॥


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7 comments:

  1. किसी ने उसे हिन्दू , किसी ने मुसलमान कहा ।
    बनाने वाले खुदा ने, लेकिन, उसे इन्सान कहा ॥
    lलाजवाब रचना है बधाई

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  2. किसी ने उसे हिन्दू , किसी ने मुसलमान कहा ।
    बनाने वाले खुदा ने, लेकिन, उसे इन्सान कहा
    bahut sahi kaha

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  3. किसी ने उसे हिन्दू , किसी ने मुसलमान कहा ।
    बनाने वाले खुदा ने, लेकिन, उसे इन्सान कहा ॥

    यही जज़्बा होना चाहिये ।

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  4. बहुत सुन्दर रचना! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  5. ज़िन्दगी जीने का सलीखा़ सिखा दे, ऐ मौला ।
    काँटों भरे चमन मे एक गुल खिला दे, ऐ मौला ॥
    तेरी रहमत पर हमें कोई शक नहीं हैं, लेकिन,
    मेरे होठों को भी एक मुस्कान दिला दे, ऐ मौला ॥
    sahee dua . Aameen.
    sabhee ka bhala ho jaega isese.............aapkee muskrahat doosaro ko bhee muskurahat degee.............

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  6. ज़िन्दगी जीने का सलीखा़ सिखा दे, ऐ मौला ।
    काँटों भरे चमन मे एक गुल खिला दे, ऐ मौला ॥

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया...... बहुत सुंदर ....रचना....

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