Thursday, May 9, 2013

दो साल बीत गये, मुझे ब्लाग पर कुछ लिखे हुए, वयस्ता के कारण । दफ्तर, कालेज और घर की ज़िम्मेदारियों में खुद के लिये उतना वक्त ही नहीं मिला । उम्मीद है, ब्लाग जगत से नाता टूटा ना होगा । इश्वर की मेहेरबानी, बुजुर्गो के आशिर्वाद और आप सबकी दुआओं से मेरा एम.बी.ए. भी पूरा हो गया अभी । _________फिलहाल एक यही ख्याल आ रह है ज़हन में : ______________ कुछ वादे ज़िन्दगी से किये थे कभी । कुछ पूरे कर दिये, कुछ बाकी है अभी ॥

Wednesday, February 2, 2011

एक सोच ..

पैरो तले रहे ज़मीन, सर के उपर हो आसमान ।
भूख मिटाने को दो रोटी, इससे ज़्यादा क्यों चाहे इन्सान ॥

लेकिन,

मिट्टी मे सब उसूल मिले, राज करे शैतान ।
सोचता हूँ ये देख कर, चुप क्यों बैठा भगवान ?

Wednesday, December 8, 2010

हादसे - ज़िन्दगी के

हालात मेरी ज़िन्दगी के क्या खराब हुए,
लोगो ने मुझसे ना मिलने का दस्तूर बना डाला ।
अब क्या करे गिला खुदा से, जो मेरा घर जल गया,
बिजली ने अपनी मर्ज़ी से अपना रास्ता बदल डाला ॥

हम तो दिये की बाती की तरह जलते रहते उम्र भर,
बेवक्त की आँधी ने मगर मेरा लौ बुझा डाला ।
ज़माने के लिये हम गुनहगार ठहरे, कैसे उन्हे समझाये,
मासूम बच्चो की भूख़ ने हमे मुज़रिम बना डाला ॥

राह पर निकले थे, तो साथ अपने कारवाँ था,
वक्त के साथ मेरे साये ने भी मुझसे नाता तोड़ डाला ।
मुशकिलों से लड़ने की आदत सी मुझको हो गई थी,
मिटा सके ना जब हौसला मेरा, तो मुझे मिटा डाला ॥

Thursday, October 21, 2010

पिता

आज बहुत दिनो बाद कुछ लिख रह हूँ । पहले माफ़ी चाहूँगा कि कई दिनो तक ब्लाग जगत से दूर रहा । कहते है, "search for knowledge never ends" . दर असल, कुछ महीनो पहले PTMBA मे भर्ती हुआ । ज्यादातर, दफ़्तर से क्लास करते हुए, देर रात घर लौटता हूँ , वक्त की कमी सी महसूस होने लगी है, अब तो । ब्लाग जगत की कमी भी महसूस होने लगी । ऐसा लगता है, एक परिवार ये भी तो है । ज्यादा दिन तक दूर नहीं रह सकता । कल, समय निकालकर कुछ ब्लाग देखे । "अपनत्व" ब्लाग पर लिखी "बाबूजी" पर लेख पढ़ा । माता-पिता का स्थान कोई नहीं ले सकता । माँ, ममता का सागर और पिता, परिवार का स्तंभ, एक सायादार पेड़ जो पूरे परिवार को ज़िन्दगी की धूप से बचाता है ।
आज का यह लेख मैं दुनिया के तमाम पिताओ को समर्पित करता हूँ, जिन्होने अपना सारा जीवन खुद का सुख भुलाकर, अपने परिवार के जिम्मेदारियो को निभाने मे व्यतीत कर दिये ।

पिता

नन्हे उगंलीयों को पकड़ चलना सिखाया ।
हर डर को मन से कोसो दूर भगाया ॥
गिरा कहीं, तो उठाकर संभलना सिखाया ।
ज़िन्दगी जीने का सलीखा मुझको समझाया ॥

अपने के निगाहों मे आँसू ले, हरपल मुझे हँसाया ।
बचपन मे घोड़ा बन पीठ पर बिठाकर घुमाया ॥
खुद एक जोड़ा पहन, मुझको नये कपड़े दिलाया ।
पेड़ का साया बन, ज़िन्दगी की धूप से मुझे बचाया ॥

बेहतर परवरिश की मेरी, हर इल्म से वाकिफ़ कराया ।
क्या बुरा यहाँ, क्या भला, हर भेद मुझे बताया ॥
कुछ कर दिखाने का अरमान दिल मे जगाया ।
थका कभी जब जीवन संघर्ष मे, हौसला मेरा बढ़ाया ॥

उनके प्रति सम्मान मे, मैने अपना शीष झुकाया ।
इस दुनिया मे वो शख्श, मेरा "पिता" कहलाया ॥

Tuesday, July 27, 2010

ख्वाईश

आज मुद्दतो बाद, तेरे शहर में आया हूँ,
सोचा, तुझे ऐ ज़िन्दगी, सलाम करता चलूँ ।
थक गया हूँ, तेरी राहों पर चलते-चलते,
दे इज़ाज़त, तो थोड़ा आराम करता चलूँ ॥

मैं एक भटका हुआ राही, तू मेरी मंज़िल ।
तू कहे, तो ये अफ़साना ब्यां करता चलूँ ॥
तुझे ढूंढ़ने के कोशिश में, खुद को खो दिया,
तू मिले, तो खुद को भी तलाश करता चलूँ ॥

ख्वाईश यही है, फूलों से सजी रहे तू सदा,
और मैं दामन अपना, काँटों से भरता चलूँ ॥
तू हर कदम पर मेरे, रेखाये खीचंती रहे,
और मैं हर हद के दायरे को पार करता चलूँ ॥

Friday, July 2, 2010

अरमान - दिल के

उन निगाहों के आईने में नज़र आता मेरा चेहरा,
खुदा करे की ये मंज़र बरकरार, बस यूँ ही रहे ।
उफ़,ये बारिश और चमकती बिजली की गरगराहट,
और वो सीने से हमारे लिपटकर, बस यूँ ही रहे ॥

आज फिर एक लहर उम्मीद की उठ कर रह गई,
दिल के समन्दर पर आया ये तूफ़ान, बस यूँ ही रहे ।
कत्ल करके ज़िन्दा रखने का हुनर कोई उनसे सीखे,
हम पर मेहरबान उनकी ये निगाहें, बस यूँ ही रहे ॥

उनके इश्क मे हमने ज़माने की नफ़रत मोल ली,
घाटा हो या मुनाफ़ा,ये सौदा दिल का,बस यूँ ही रहे ।
उनके होठों पर मुस्कान,चाहे हो हमारे निगाहों में आँसू,
ये मासूम अरमान दिल के बरकरार, बस यूँ ही रहे ॥

Tuesday, June 29, 2010

शिर्डी यात्रा

हुआ दर्शन तेरा, खुले मेरे भाग्य के द्वार ।
शिर्डी वाले बाबा, तेरी महिमा अपरमपार ॥

जो जाता, तेरे गुण गाता, पाता तेरा प्यार ।
ना कोई भेद-भाव वहाँ, अनूठा तेरा संसार ॥

बहुत दिन हो गये, थोड़ा व्यस्त हो गया था, ज़िन्दगी के भाग दौड़ में । तबियत अभी ठीक है ।
पिछ्ले शनिवार को मैं शिर्डी गया था परिवार के साथ । साथ मे हमारे एक अच्छे मित्र और उनका परिवार भी था । पहली बार मैं खुद गाड़ी चलाकर गया और अगले दिन लौटा । सफर बहुत अच्छा रहा । मौसम सुहावना था । दर्शन भी अच्छे से हो गये । हाँ, थोड़ी भीड़ जरूर थी पर अच्छा लगा । पिछले महीने भी गया था, फिर जाने का मन किया, सो चल दिया । बाबा के दर्शन के बाद जो ख्याल आया वो ऊपर बयां किया । उम्मीद है, इश्वर का आशिर्वाद और आप सबका प्यार यूँ ही मिलता रहेगा ।