Thursday, March 25, 2010

तलाश

मिट गई है जो अपने हाथों से, वो लकीरे ढूढ़ंते रहे ।
तराश सके हमारे तकदीर को, ऐसा कारीगर ढूढ़ंते रहे ॥
दूर होकर भी भुला ना पाया है, ये दिल उनको,
फ़ासलों के दरमियाँ हम नज़दिकीयाँ ढूढ़ंते रहे ॥

तेरे होठों पर एक मुस्कुराहट की ख्वाईश लिये,
तमाम उम्र, काटों के चमन में कलीयाँ ढूढ़ंते रहे ।
यकीन कुछ इस कदर था, तेरे वादे पर हमे,
हम अमावस की रात में पूनम का चाँद ढूढ़ंते रहे ॥

घर के आंगन मे जलता था जो चराग़ कभी,
उसकी लौ, हम शहर की बिजलियो मे ढूढ़ंते रहे ।
सिमट कर रह गई हैं ज़िन्दगी चार दिवारो में,
बन्द कमरे मे रहकर, खुला आसमान ढूढ़ंते रहे ॥

सामने था, जो रोते बच्चो को ताउम्र हसाँया किया,
और हम मंदिर-मस्ज़िद, उम्र भर, ख़ुदा को ढूढ़ंते रहे ।
आज निगाहें है ना जाने क्यों, अश्को से डबडबाई हुई,
बुढ़ापे के दहलीज़ पर, बचपन की किलकारियाँ ढूढ़ंते रहे ॥

Thursday, March 18, 2010

नाकाम मोहब्बत

परिन्दे भी अब इस शहर से रवाना हो चले ।
कि इस शहर के पेड़ो पर अब शाखे नहीं रही ॥

जो तुमको देख कर जी बहला लेते थे कभी,
इस चेहरे पर अब वो निगाहें नहीं रही ॥

आज हर तरफ़ हैं अन्धेरा अपनी बाहें फैलाये हुए,
राह दिखलाती जो, वो रोशनी की किरणे नहीं रही ॥

छोड़ कर चल देना तुम्हारा, यूँ बेबस मुझको, मुनासिब था,
जो तुमको लगाये रखे सीने से, अब वो बाहें नहीं रही ॥

अब तो बिछड़ने का गम और ये लाचार सन्नाटा है घेरे हुए,
दिल को बहलाती हुई तुम्हारी वो मोहब्बत की बातें नहीं रही ॥

दफ़्न कर रहे हैं मुझे मेरी यादों के साथ, अब कैसे कहे उनसे ।
हर साँस कर रही थी उनका इन्तेज़ार,कि अब साँसें नहीं रही ॥

Tuesday, March 9, 2010

" नारी " - महिला दिवस के उपलक्ष में

नारी कोमल भी, नारी शक्ति भी,
नारी इश्वर मे लीन भक्ति भी ।
नारी बेटी, बहन, माँ और पत्नी का प्यार भी,
नारी अपने में सिमटा पूरा संसार भी ॥

बेटी बन, पिता की इज़्जत पर आँच ना आने दिया ।
बहन बन, भाई के पास किसी बला को ना जाने दिया ॥
पत्नी बन, पति का जीवन सँवार दिया ।
और माँ बन, सारी बलाईयाँ अपने सर लिया ।

भूखे पेट रहकर, परिवार को खिलाने की ममता नारी में।
निगाहों मे अश्क लेकर मुस्कुराने की क्षमता नारी में ॥
मैका भुलाकर, ससुराल को अपनाने का ज़ज्बा नारी में ।
सुहाग के लिये, यमराज से टकराने का हौसला नारी में ॥

ज़िन्दगी मे नारी की मर्यादा का मान किजीये ।
सरेबाज़ार ना उसकी आबरू कभी निलाम किजीये ॥
वक्त के साथ बेटी ही होती हैं, माँ की ममता का रूप,
जन्म लेने से पहले उसके कफ़न का ना इन्तेजाम किजीये ॥

Saturday, March 6, 2010

नादान ख़्वाब मेरे

कुछ ख़्वाब मेरे निगाहों से कहीं खो गये हैं
गर तुम्हे दिखे कहीं, तो मुझे लौटा देना ।
नादान ख़्वाब मेरे, छोटे छोटे, परेशान से,
गर तुम्हे मिले कहीं, तो मुझे लौटा देना ॥

था बसाया एक छोटा सा संसार कहीं,
थी खुशीयां वहाँ पर, कोई गम नहीं ।
गर चलते चलते पँहुच जाओ वहाँ कभी,
तो पता वहाँ का मुझे भी बता देना ।।

ज़्यादा बड़े नहीं थे वो, थे मासूम वो ,
एक अमन की आस, एक प्यार की प्यास ।
गर तुम्हे मिल जाये कहीं दोनों, बेबस, लाचार,
तो मुझसे भी उन्हें मिला देना ॥

वो मेरी निगाहों मे बसी तुम्हारी परछाई ।
वो तुमसे ज़ुदा हो कर मेरी तन्हाई ॥
गर मिलकर सुनायें तुमको मेरी दास्ताँ कहीं ,
तो मुझे भी उस महफ़िल मे बुला लेना ॥

है वो दुनियादारी से बेखबर, अनजान ।
नहीं उन्हें, भले-बुरे की कुछ पहचान ॥
अश्क बनकर, निगाहों से छलके, खो गये,
गर तुम्हे दिखे कहीं, तो मुझे लौटा देना ।

कुछ ख़्वाब मेरे निगाहों से कहीं खो गये हैं।
गर तुम्हे मिले कहीं, तो मुझे लौटा देना ॥

Monday, March 1, 2010

दिल की भावनायें - होली में

आया फागुन का महिना और होली का पावन त्योहार ।
आओ खोलें हम सब, अपने- अपने दिल के बंद द्वार ॥
हिंसा को करके विदा, दे अमन और भाईचारे को निमंत्रन ।
आओ बाँटे हमसब मिलकर, इस दुनियाँ मे प्यार ॥

अबीर उड़े, गुलाल उड़े, हो आकाश पर रंगो की बौछार ।
सबको मिले इस जहाँ में, दामन भर खुशीयाँ बेशुमार ॥
अब लहू का रंग ना मिले, इन पाक रंगो मे ,
ना रहे इन्सानों मे दिल में, अब नफ़रत की दीवार ॥

ज़िन्दगी मे किसी के गम ना हो, रहे खुशियाँ हजार ।
अश्क लेकर मुस्कान बाँटें, हो सबके ये नेक विचार ॥
भाई, भाई की ज़ान न ले, बेटे ना करे माँ-बाप को बेघर,
मिलकर रहे सब, ना हो किसी रिश्ते में फूट की दरार ॥

थक गयी माँ जननी, सहते-सहते ये बेवज़ह मानव संहार ।
मत डालो, लहू का लाल रंग मुझपर, करे दुखियारी पुकार ॥
हरीयाली रहे बदन पर, रहे सर पर श्वेत पर्वतो का ताज़ ।
माँ की आँचल की छाया मिले, मिले सबको जननी का दुलार ॥

यही प्रार्थना मेरी, यही मेरे मन के विचार ।
मिले सबको धन, यश, सुकूऩ और प्यार बेशुमार ॥
हो जीवन मे आपके आशा के रंगों की बौछार ।
बधाई आप सबको, मुबाऱक होली का त्योहार ॥