लो अब महंगी ज़िन्दगी और मौत सस्ती हो चली ।
शहर को रवाना हुए लोग, कि खाली बस्ती हो चली ॥
मुफ़लिसी ने इन होठों की मुस्कुराहट छीन ली , लेकिन,
मेरे अश्को का कोई दावेदार नहीं, दिल को ये तसल्ली हो चली ॥
यारो ने यारी निभाई कुछ इस तरह , ऐ मेरे रकीब ,
कि इस ज़हां मे, अब हमारी, दुश्मनो से दोस्ती हो चली ॥
हर शख्स है अपने ही बनाये हुए, ख्वाबो-खयालो मे रहता हुआ ।
हर किसी के लिये, ये दुनिया देखो, छोटी हो चली ॥
जिस आँगन मे गूंजा करती थी कभी सदा, किलकारियों की ,
देखो वो घर भी,उन यादों के साथ, आज निलाम हो चली ॥
चन्द साँसों को समेटकर रखा था,इस दिल मे, बड़े ऐख्तियार से,
लो वो भी आज, तुमहारे बिछरते ही, बेवफ़ा हो चली ॥
Friday, January 29, 2010
Tuesday, January 26, 2010
Thursday, January 21, 2010
एक दुआ, ख़ुदा से..
ज़िन्दगी जीने का सलीखा़ सिखा दे, ऐ मौला ।
काँटों भरे चमन मे एक गुल खिला दे, ऐ मौला ॥
तेरी रहमत पर हमें कोई शक नहीं हैं, लेकिन,
मेरे होठों को भी एक मुस्कान दिला दे, ऐ मौला ॥
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किसी ने उसे हिन्दू , किसी ने मुसलमान कहा ।
बनाने वाले खुदा ने, लेकिन, उसे इन्सान कहा ॥
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काँटों भरे चमन मे एक गुल खिला दे, ऐ मौला ॥
तेरी रहमत पर हमें कोई शक नहीं हैं, लेकिन,
मेरे होठों को भी एक मुस्कान दिला दे, ऐ मौला ॥
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किसी ने उसे हिन्दू , किसी ने मुसलमान कहा ।
बनाने वाले खुदा ने, लेकिन, उसे इन्सान कहा ॥
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Wednesday, January 20, 2010
कुछ और दिल की बातें
देखिये ना इन मदभरी निगाहों से हमें,
ना जाने क्या खता हो जाए ।
हम दिवाने होकर भटकते फिरे ,
और आप किसी ग़ैर की हो जाए ॥
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देखा है हमने भी ज़न्नत को ख्वा़बो मे अकसर ।
फिर भी हमें उनका मुस्कुराना बेहतर लगा ।।
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बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं ।
जो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ॥
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ना जाने क्या खता हो जाए ।
हम दिवाने होकर भटकते फिरे ,
और आप किसी ग़ैर की हो जाए ॥
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देखा है हमने भी ज़न्नत को ख्वा़बो मे अकसर ।
फिर भी हमें उनका मुस्कुराना बेहतर लगा ।।
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बड़े नादान है वो, जो ज़ुबां से काम लेते हैं ।
जो निगाहों से ना हो, तो गुफ्तगू क्या है ॥
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Monday, January 18, 2010
इरादा
नये साल में, चुन लीं हैं नई मन्ज़िलें।
नये पंख लगाये, उड़ चले पुराने परिन्दें ॥
नये ज़माने मे नया इतिहास रचने वाले ।
आसमान को छूने का दावा करने वाले ॥
अब तक जो होता रहा, अब ना हो पायेगा।
ज़ुल्म के आगे, कोई सर ना झुक पायेगा ॥
संभल जाओ, ऐ ज़ुल्म के ठेकेदारों,
हम आ गये हैं, वक्त को बदलने वाले ॥
हर चेहरे पर मुस्कान लाने का इरादा हैं ।
हर आँख से आँसू पोछने का वादा हैं ॥
अब हर अंधेरा मिटाने का ठाना हैं ।
हम रात के सीने से उज़ाला छीनने वाले ॥
काँटों पर चलकर फूलों की मंज़िल पाना हैं ।
अब किया हुआ हर वादा निभाना हैं ॥
अब ज़िन्दगी को दाँव पर लगाना हैं ।
हम हैं सर पर कफ़न बाँध कर निकलने वाले ॥
नये पंख लगाये, उड़ चले पुराने परिन्दें ॥
नये ज़माने मे नया इतिहास रचने वाले ।
आसमान को छूने का दावा करने वाले ॥
अब तक जो होता रहा, अब ना हो पायेगा।
ज़ुल्म के आगे, कोई सर ना झुक पायेगा ॥
संभल जाओ, ऐ ज़ुल्म के ठेकेदारों,
हम आ गये हैं, वक्त को बदलने वाले ॥
हर चेहरे पर मुस्कान लाने का इरादा हैं ।
हर आँख से आँसू पोछने का वादा हैं ॥
अब हर अंधेरा मिटाने का ठाना हैं ।
हम रात के सीने से उज़ाला छीनने वाले ॥
काँटों पर चलकर फूलों की मंज़िल पाना हैं ।
अब किया हुआ हर वादा निभाना हैं ॥
अब ज़िन्दगी को दाँव पर लगाना हैं ।
हम हैं सर पर कफ़न बाँध कर निकलने वाले ॥
Saturday, January 16, 2010
दिल की बातें
उन्होंने मोहब्बत को खेल, दिल को एक खिलौंना समझा ।
ठोकर खाकर भी, एक बेवफ़ा को हमनें अपना समझा ॥
दिल को जाना था, गया, अब ज़ान पर बन आई है ।
फिर भी उनके हर सितम को हमने अदा समझा ॥
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अपने चहरे पर आप यूँ नक़ाब ना लगाईये ।
चेहरा छुपाकर इस दिल में आग़ ना लगाईये ॥
जल जाने का हमें कोई ग़म नहीं है, लेकिन,
ख़ुद पर आप ये इल्ज़ाम तो ना लगाईये ॥
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ठोकर खाकर भी, एक बेवफ़ा को हमनें अपना समझा ॥
दिल को जाना था, गया, अब ज़ान पर बन आई है ।
फिर भी उनके हर सितम को हमने अदा समझा ॥
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अपने चहरे पर आप यूँ नक़ाब ना लगाईये ।
चेहरा छुपाकर इस दिल में आग़ ना लगाईये ॥
जल जाने का हमें कोई ग़म नहीं है, लेकिन,
ख़ुद पर आप ये इल्ज़ाम तो ना लगाईये ॥
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Friday, January 15, 2010
मुलाक़ात
हकीक़त में मिले उनसे, ऐसी हमारी क़िस्मत कहाँ ।
मुलाकात भी की हमने, तो ख्वाबो़ में की ॥
टूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से ,
गुफ़्तगू भी की हमने , तो निगाहों से की ॥
मुलाकात भी की हमने, तो ख्वाबो़ में की ॥
टूट ना जायें, ये ख्वाब सुनहरा कहीं आवाज़ से ,
गुफ़्तगू भी की हमने , तो निगाहों से की ॥
Thursday, January 14, 2010
तलाश
ज़िन्दगी माँग रही है मुझसे, हर पल का हिसाब।
और मैं, उन पलो में अपनी उम्र तलाश कर रहा हूँ ।।
यूँ तो दुनियाँ में मेरी पहचान, मेरे नाम से हैं ।
और मैं, अपने नाम में अपना वज़ूद तलाश कर रहा हूँ।।
और मैं, उन पलो में अपनी उम्र तलाश कर रहा हूँ ।।
यूँ तो दुनियाँ में मेरी पहचान, मेरे नाम से हैं ।
और मैं, अपने नाम में अपना वज़ूद तलाश कर रहा हूँ।।
कल मैने कुछ शब्दो के ज़रिये अपने भावनाओ को रखा था।
माफ़ी चाहूँगा, कुछ तकनीकी कारण से वो पोस्ट शायद सही से छप नहीं पाया और ऐसा लगता था की शब्द बार बार दोहराये जा रहे है । अत: , मैं फिर से उसको दोबारा पेश कर रहा हूँ। त्रुटी के लिये क्षमा प्रार्थी ।
भटकता राही
--------------
अज़नबी शहर में, अकेला भटक रहा हूँ मैं ।
अन्जान राहों में, अकेला भटक रहा हूँ मैं ।।
ठहरे हुए इन हवाओ में , बेवज़ह ,
श्वास तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।
पत्थर के मकान, पत्थर के भगवान ।
मिला जो भी यहाँ, वो भी पत्थर जैसा ।।
पत्थर की हर मूरत में , बेवज़ह ,
धरकन तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।
समन्दर है ठहरा हुआ, हवायें हैं रूकी हुई ।
फूल है मुर्झाये हुए, ओस हैं पत्थराई हुई ।।
मरघट से इस आलम में , बेवज़ह ,
ज़िन्दगी तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।
माफ़ी चाहूँगा, कुछ तकनीकी कारण से वो पोस्ट शायद सही से छप नहीं पाया और ऐसा लगता था की शब्द बार बार दोहराये जा रहे है । अत: , मैं फिर से उसको दोबारा पेश कर रहा हूँ। त्रुटी के लिये क्षमा प्रार्थी ।
भटकता राही
--------------
अज़नबी शहर में, अकेला भटक रहा हूँ मैं ।
अन्जान राहों में, अकेला भटक रहा हूँ मैं ।।
ठहरे हुए इन हवाओ में , बेवज़ह ,
श्वास तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।
पत्थर के मकान, पत्थर के भगवान ।
मिला जो भी यहाँ, वो भी पत्थर जैसा ।।
पत्थर की हर मूरत में , बेवज़ह ,
धरकन तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।
समन्दर है ठहरा हुआ, हवायें हैं रूकी हुई ।
फूल है मुर्झाये हुए, ओस हैं पत्थराई हुई ।।
मरघट से इस आलम में , बेवज़ह ,
ज़िन्दगी तलाश करता भटक रहा हूँ मैं ।।
Tuesday, January 12, 2010
हौसला
हालात से लड़कर तकदीर बदलने का इरादा रखते है !
हम तुफानो में भी कश्ती उतारने का हौसला रखते है !!
बाजू काटकर , हमे कमज़ोर ना समझ, ए नासमझ ,
हम ताकत अपने हाथों में नहीं , जिगर में रखते है !!
हम तुफानो में भी कश्ती उतारने का हौसला रखते है !!
बाजू काटकर , हमे कमज़ोर ना समझ, ए नासमझ ,
हम ताकत अपने हाथों में नहीं , जिगर में रखते है !!
एक सवाल ख़ुदा से
तेरे जहाँ में , ए ख़ुदा , ऐसा घर भी है कहीं?
की जिसमे, ग़म के कदमो की आहट न हो !
तेरे जहाँ में, ए ख़ुदा, ऐसी निगाहे भी है कहीं ?
की जिसमे, अश्को का सैलाब न हो !
तेरे चमन में , ए ख़ुदा , ऐसी कली भी है कहीं ?
की जिसके दामन में एक काँटा न हो?
तेरे दिए हुए हर सांस में , एक पल भी है कहीं ?
की जिस पर मौत का साया न हो ?
तेरे बनाये हुए दिल में , ऐसा है क्यों नहीं ?
की नफरत के लिए जिसमे जगह न हो !
ऐसा है क्यों नहीं ?
ऐसा है क्यों नहीं ?
की जिसमे, ग़म के कदमो की आहट न हो !
तेरे जहाँ में, ए ख़ुदा, ऐसी निगाहे भी है कहीं ?
की जिसमे, अश्को का सैलाब न हो !
तेरे चमन में , ए ख़ुदा , ऐसी कली भी है कहीं ?
की जिसके दामन में एक काँटा न हो?
तेरे दिए हुए हर सांस में , एक पल भी है कहीं ?
की जिस पर मौत का साया न हो ?
तेरे बनाये हुए दिल में , ऐसा है क्यों नहीं ?
की नफरत के लिए जिसमे जगह न हो !
ऐसा है क्यों नहीं ?
ऐसा है क्यों नहीं ?
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